आखिर पानीपत फिल्म का विरोध क्यों कर रहे है जाट
#क्या कहा था सूरजमल ने, जो न मानने पर बुरी तरह हारे भाऊ
– अब्दाली की सेना पर अभी आक्रमण मत करो। अभी सर्दी है। गर्मी को ये लोग सहन नहीं कर सकते, अत: हम गर्मी में ही हमला करेंगे।
– कई हजार स्त्रियों और बच्चों को युद्ध में साथ लिए-लिए मत फिरो, क्योंकि हमारा ध्यान इनकी सुरक्षा में बंट जाएगा। अत: इन्हें हमारे डीग के किले में सुरक्षित रखो, ताकि हम निश्चिन्त होकर लड़ सकें।
– शत्रु की सेना पर सीधा आक्रमण नहीं करना चाहिए, क्योंकि इनकी सेना बहुत अधिक है और भारत के बहुत मुस्लिम भी इनके पक्ष में हैं। अत: इनसे झपट्टा मार लड़ाई करके छापे मारो। (यह गुरिल्ला युद्ध ही था जो प्राचीन काल से ही हरियाणा के यौधेयगण और पंचायती मल्ल करते आ रहे थे और सारे भारत को सिखाया था। मनुस्मृति में भी इसका विधान है।)
– लालकिले की सम्पत्ति मत लूटो नहीं तो मुस्लिम शासक सरदार रुष्ट होकर अब्दाली के पक्ष में हमारा विरोध करेंगे। हम भरतपुर कोष से मराठा सेनाओं का वेतन भी दे देंगे।
– किसी मुगल सरदार की अध्यक्षता में एक दरबार लगाकर स्वदेश रक्षा और युद्ध योजना निश्चित करो, ताकि भारत के मुसलमान भी सन्तुष्ट होकर हमारे सहयोगी बने रहें।
– जनता को मत लूटो और खड़ी फसलों को मत जलाओ। हम सारे भोजन पदार्थों का प्रबन्ध कर देंगे।
– शत्रु की खाद्य टुकड़ी को काटने की योजना बनाओ।
– गर्मी आते ही मिलकर शत्रु सेना पर हमला कर देंगे। अब्दाली को भारत के बाहर ही रोकना चाहिए था।
#सच्चाई क्या है
फिल्म में बताया गया है कि उन्होंने आगरा किले की मांग की, जबकि सत्य तो यह है कि आगरा का किला तो पहले ही जाट रियासत के अधीन था, बल्कि भरतपुर रियासत का शासन अलीगढ़ तक था। महाराजा सूरजमल और उनके महामंत्री रूपराम कटारिया मराठा सेना के शिविर में गए थे, जहां मराठा सेना के साथ आई महिलाओं और बच्चों को सुरक्षित स्थान ग्वालियर अथवा डीग और कुम्हेर के किले में रखने का सुझाव दिया था। किंतु उनके परामर्श को नहीं माना गया और उपेक्षा की गई। इस पर वे अभियान से अलग हो गए। इसलिए फिल्म में महाराजा सूरजमल का चरित्र ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत है। जिसका विरोध किया जाना चाहिए।