दलाल जाट गोत्र dalal jat gotra
उदयपुर रियासत के सरदार कोड खोखर की चार संतान हुई जिसमें से एक का नाम दलाल था। इस दलाल से दलाल गोत्र का निर्माण हुआ। दलाल चौहान संघ में शामिल था। जानकारी के अनुसार इनका राज्य मुस्लिम धर्म की उत्पत्ति से पहले मध्यपूर्व में या कह सकते है कि गजनी में रहा था।
गजनी में जब मुसलमान बादशाहों की शक्ति बढने लगी तो ये लोग अपने पैतृक देश भारत में आकर बस गए। दलाल जाटों का एक दल गजनी से पंजाब, भटिंडा होता हुए हरियाणा के जिला रोहतक में आया। ये लोग सिलौठी गांव में ठहरे फिर यहां से माण्डोठी गांव के अलावा कई जगहों पर आबाद हो गए। जानकारी के अनुसार माण्डोठी से निकलकर मातन व छारा गांव इन्होंने बसाया। हरियाणा के रोहतक जिले में दलाल खाप के 12 गांव जो इस प्रकार से है छारा, मातन, रिवाडी खेडा, आसौदा, जाखोदा, सिलौठी, टाण्डाहेडी, डाबौदा, मेहंदीपुर, खरमान गांव है जबकि माण्डोठी इन सबका प्रधान गांव के रूप में देखा जाता है।
माण्डोठी गांव से जाकर दलाल जाटों ने चिडी गांव बसाया। चिउी गांव से दलालों का गांव लजवाना आबाद हुआ यह गांव जींद जिले में पडता है।
दलाल राज-वंश
हमारी जानकारी के अनुसार इस राजवंश की राजधानी बुलन्दशहर में स्थित कुचेसर नामक शहर था। भुआल, जगराम, जटमल और गुरवा नामक चार भाई थे। उन्हीं चारों ने इस राज्य की नींव डाली थी।
भुआल के पुत्र मौजीराम हुए। इनके रामसिंह और छतरसिंह नाम के दो लड़के थे। छतरसिंह एक ताकतवर व चतुर व्यक्ति था जिसको राज काज का काफी ज्ञान था। इसीलिए उन्होंने अपने ताकत व मेहनत के बल पर बहुत-सा इलाका जीता । भुआल के मगनीराम और रामधन नाम के दो सुपुत्र थे। जब महाराज जवाहरसिंह ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए दिल्ली पर चढ़ाई की तो उस समय इन लोगों ने बड़ी मदद की। दिल्ली के नवाब नजीबुद्दौला ने उस समय एक चाल चली। छतरसिंहजी को अपने पक्ष में मिला लिया। उन्हें राव का खिताब दिया और साथ ही कुचेसर की जागीर और 9 परगने का चोर मार का औहदा भी दिया। छतरसिंहजी ने अपने पुत्रों और सैनिकों को महाराज जवाहरसिंहजी की सहायता से अलग कर लिया। दिल्ली की ओर से अलीगढ़ में उन दिनों असराफियाखां हाकिम था। शाह दिल्ली और महाराज जवाहरसिंह के युद्ध के बाद उसने कुचेसर पर चढ़ाई कर दी। क्योंकि कुछ सौदागरों ने उसके कान भर दिए और उसे यकीन दिला दिया कि कुचेसर के लोग अगर बढते ही गए तो अलीगढ के हाकिम के लिए यह बहुत ही खतरनाक होगा। जिसके बाद
एक चटपटी लड़ाई कुचेसर के गढ़ पर हुई, किन्तु दलाल जाट हार गए। राव मगनीराम और रामधनसिंह कैद कर लिए गए। कोइल के किले में उन्हें बन्द कर दिया गया, किन्तु समय पाकर वे दोनों भाई कैद से निकल गये। बड़ी खोज हुई, किन्तु वे हाथ नहीं आए। पहले ये लोग सिरसा पहुंचे और फिर वहां से मुरादाबाद पहुंच गए। अब यही उचित था कि वे मराठों से मिल जाते। मराठा हाकिम ने इन्हें आमिल का औहदा दिया।
सन् 1782 ई. में दोनों भाइयों ने सेना लेकर कुचेसर के मुसलमान हाकिम पद चढ़ाई कर दी। शत्रु को परास्त करके कुचेसर पर अधिकार कर लिया। जब भी अवसर हाथ आता अपना राज्य बढ़ा लेने में वे न चूकते थे। कुचेसर की विजय के बाद मगनीराम जी का स्वर्गवास हो गया। उनके दो स्त्री थीं। पहली से सुखसिंह, रतीदौलत और बिशनसिंह नामक तीन पुत्र थे। चार पुत्र दूसरी स्त्री से भी थे। मगनीराम ने अपनी रानी भावना को एक बीजक दिया था, जिसमें बहादुरनगर के खजाने का जिक्र था। जाट रिवाज के अनुसार रामधन ने उससे चादर डालकर शादी कर ली। इस तरह बहादुरनगर का खजाना रामधनसिंह को मिल गया। कहा जाता है कि इस शादी में भावना की भी मर्जी थी। धन के मिलने पर रामधनसिंहने अपने वचन-पालन में ढिलाई की। वह अपने बच्चों की अपेक्षा भतीजों के साथ अधिक सलूक न करते थे। 1790 ई. तक रामधनसिंह ने कुल राज्य पर अपना अधिकार जमा लिया। उस समय दिल्ली में शाहआलम बादशाहत करता था। उससे पूठ, सियाना, थाना फरीदा, दतियाने और सैदपुर के परगने का इस्तमुरारी पट्टा प्राप्त कर लिया। इस तरह से रामधनसिंह राज्य बढ़ाने और अधिकृत करने में सतर्कता से काम लेने लगे। शाहआलम से प्राप्त किए हुए इलाके की 4000 रुपया मालगुजारी उन्हें मुगल-सरकार को देनी पड़ती थी। शाहआलम के युवराज मिर्जा अकबरशाह ने भी सन् 1794 ई. में इस पट्टे पर अपनी स्वीकृति दे दी। राव रामधनसिंह का अपने भतीजों के प्रति व्यवहार अत्यन्त बुरा और अत्याचारपूर्ण बताया जाता है। उनमें से कुछ तो मर गए, कुछ भागकर मराठा हाकिम के पास मेरठ चले गए। मराठा हाकिम दयाजी ने उनको छज्जूपुर और कुछ दूसरे मौजे जिला मेरठ में इस्तमुरारी पट्टे पर दे दिए। इनके वंशज आगे के समय में मेरठ तथा जिले के अन्य स्थानों पर आबाद हो गए। मराठा हाकिम से मिलने के पूर्व राव रामधनसिंह के भतीजे ईदनगर में जाकर रहे थे। यहीं से उन्होंने मेरठ के मराठा हाकिम से मेल-जोल बढ़ाया था। लगातार प्रयत्न के बाद भी वह इतने सफल नहीं हुए कि राव रामधनसिंह से अपने हिस्से की रियासत प्राप्त कर लेते।
मुगल सलतनत के नष्ट होने पर जब ब्रिटिश गवर्नमेण्ट ने भारत के शासन की बागडोर अपने हाथ में ली तो उसने भी सन् 1803 में मुगलों द्वारा दिए हुए इलाके या निज के देश पर कुचेसर के अधीश्वर के वही हक मान लिए, जो मुगल-शासन में थे।
कुछ समय बाद राव रामधनसिंह ने उस मालगुजारी को देना भी बन्द कर दिया जो वह पहले से दिया करते थे। इसलिए सरकार ने उन्हें मेरठ में बन्द कर दिया। वहीं पर सन् 1816 ई. में उनका स्वर्गवास हो गया।
रामधनसिंह के मरने के बाद उनके लड़के फतहसिंह रियासत के मालिक हुए। फतहसिंह ने उदारतापूर्वक अपने चाचा के लड़कों का खान-पान मुकर्रर कर दिया। उन्हीं लड़कों में राव प्रतापसिंहजी भी थे। उन्होंने रियासत में भी कुछ हिस्सा हासिल कर लिया। राव फतहसिंह ने भी रियासत को बढ़ाया ही। सन् 1839 ई. में राव फतहसिंह का स्वर्गवास हो गया। उनके पश्चात् उनके पुत्र बहादुरसिंह राज के मालिक हुए। राव फतहसिंह ने जहां एक बड़ी रियासत छोड़ी, वहां उनके खजाने में भी लाखों रुपया एकत्रित था। राव बहादुरसिंह ने अपने पिता की भांति रियासत को बढ़ाना ही उचित समझा और 6 गांव खरीदकर रियासत में शामिल कर लिये। राव बहादुरसिंहजी ने एक राजपूत बाला से भी शादी की थी। जाट-विदुषी के पेट से उनके यहां लक्ष्मणसिंह और गुलाबसिंह नाम के दो पुत्र और राजपूत-बाला के पेट से बमरावसिंह पैदा हुए थे। लक्ष्मणसिंह का स्वर्गवास अपने पिता के ही आगे हो गया था। राव बहादुरसिंह के राज्य का अधिकारी कौन बने इस बात पर काफी झगड़ा चला। यह भी कहा जाता है कि बिरादरी के कुछ लोगों ने राजपूतानी के पेट से पैदा हुए बालक को दासी-पुत्र ठहरा दिया और राज्य अधिकारी गुलाबसिंह को ठहराया। इसका फल यही हो सकता था कि दोनों भाई आपस में झगड़ते-लड़ाई बखेड़ा करते।
एक दुर्घटना यह हुई कि राव बहादुरसिंह अपने महल के अन्दर सन् 1847 ई. में कत्ल कर दिए गए। इस सम्बन्ध में अनेक तरह के मत हैं। कत्ल करने वालों को सजा हुई।
उमरावसिंह ने रियासत में हिस्सा पाने के लिए ब्रिटिश अदालत में दावा किया, किन्तु सदर दीवानी अदालत ने सन् 1859 ई. मे उनके दावे को खारिज कर दिया। सन् 1857 ई. में अन्य राजा रईसों की भांति गुलाबसिंहजी ने भी अंग्रेज-सरकार की खूब सहायता की। जिसके बदले में ब्रिटिश-सरकार ने उन्हें कई गांव तथा राजा साहब का
खिताब प्रदान किया। राजा गुलाबसिंहजी का सन् 1859 ई. में स्वर्गवास हो गया। राजा साहब के कोई पुत्र न था। एक पुत्री थी बीवी भूपकुमारी। मरते समय राजा साहब ने रानी सहिबा श्रीमती जसवन्तकुमारी को पुत्र गोद लेने की आज्ञा दे दी थी। किन्तु उन्होंने कोई पुत्र गोद नहीं लिया। रानी साहिबा के पश्चात् भूपकुमारी रियासत की अधिकारिणी बनीं। सन् 1861 ई. में वह भी निःसंतान मर गई। भूपकुमारी की शादी बल्लभगढ़ के राजा नाहरसिंह के भतीजे खुशालसिंह से हुई थी। अपनी स्त्री के मरने पर वही कुचेसर रियासत के मालिक हुए। उमरावसिंह ने फिर अपने हक का दावा किया, किन्तु फल कुछ न निकला। राव प्रतापसिंहजी ने भी अपने हक का दावा किया जो कि मगनीराम के पोते थे। सन् 1868 ई. में अदालती पंचायत से प्रतापसिंह जी को राज्य का पांच आना, उमरावसिंह को छः आना और शेष पांच आना खुशालसिंह को बांट दिया गया। राव फतहसिंह जी का संचय किया हुआ धन इस मुकदमेबाजी में स्वाहा हो गया।
रियासत का इस तरह बंटवारा होने पर कुछ शांति हुई। राव उमरावसिंह ने अपनी एक लड़की की शादी खुशालसिंह से कर दी। खुशालसिंह सन् 1879 ई. में इस संसार से चल बसे। उनके कोई पुत्र न था इसलिए दोनों हिस्सों का प्रबन्ध उनके ससुर उमरावसिंहजी के हाथ में आ गया। वे दोनों राज्यों का भली भांति प्रबन्ध करते रहे। सन् 1898 ई. में उमरावसिंह का भी स्वर्गवास हो गया। उनके तीन लड़के थे पहली पत्नी रानी से और एक लड़का दूसरी रानी से था। सबसे बड़े राव गिरिराजसिंह थे। उनके जाति खर्च के लिए अपने भाइयों से अधिक भाग मिला था। मुकदमे-बाजी ने इस घराने को बरबाद कर रखा था। साहनपुर की रानी सहिबा श्रीमती रघुवरीकुवरि ने राव गिरिराजसिंह जी तथा उनके भाइयों पर तीन लाख मुनाफे का (अपना हक बताकर) दावा किया था। पिछले बन्दोबस्त में पूरे 60 गांव और 16 हिस्से इस रियासत के जिला बुलन्दशहर में थे। इसकी मालगुजारी सरकार को सन् 1903 से पहले दी जाती थी। रियासत साहनपुर और कुचेसर का वर्णन प्रायः सम्मिलित है। श्रीमान् कुंवर ब्रजराजसिंह जी रियासत साहनपुर के मालिक थे। इन रियासतों का संयुक्त-प्रदेश के जाटों में अच्छा सम्मान था।
dalal jat village
Distribution in Delhi
Ujawaa,
Distribution in Haryana
Villages in Hisar district
Kumbha,
Villages in Faridabad district
Piyala, Fatehpur Billoch
Villages in Palwal district
Kithwari (किठवाड़ी),
Villages in Jhajjar district
Asaudha (आसौधा), Chhara (छारा), Daboda Kalan (डाबोदा कलां), Jakhodha, Mandauthi (मांडौठी), Matin (मातिन), Rewari Khera, Silothi, Tandaheddi (टांडाहेड़ी),
Villages in Rohtak district
Bharan, Chiri, Daboda, Mehndipur, Rajori,
Villages in Jind district
In Jind district,Naguran, Kheri Naguran Akalgarh, Sandeel, (Motala), and Lajwana (लजवाणा) are famous Dalal Gotra villages. An interesting story about Lajwana village is contained in Swami Omanand’s book देशभक्तों के बलिदान.
Villages in Sonipat district
Mehndipur Sonipat, Poothi, Sewali,
Distribution in Rajasthan
Locations in Jaipur city
Mansarowar Colony,
Villages in Alwar district
Bhajeet, Doomera, Moonpur, Resti,
Villages in Nagaur district
Kanwalad ,
Distribution in Uttar Pradesh
Villages in Meerut district
Chhazpur (छाजपुर),
Uplehda (उपळैहडा),
Mohiuddinpur
Samaspur Surani,
Bafar,
Villages in Moradabad district
Nagla Salar,
Bhainsorh (भैसौङ) ,
Chandpur Ganesh
All the three villages come in तहसीळ-बिळारी
Villages in Bulandshahr district
Madona Jafrabad,
Saidpur,
Sega Jagatpur, Lohlara
Villages in Shamli district
Oon,
Khera Gadai,
Rajjhar,
Bajheri,
Villages in Muzaffarnagar district
Bhopa,
Villages in Bijnor district
Maujampur Dalal,
Maheshwari Jat,
Villages in Rampur district
Mewala Kalan,
Distribution in Madhya Pradesh
They are found in Bhopal, Ratlam and Nimach districts in Madhya Pradesh.
Villages in Ratlam district
Villages in Ratlam district with population of this gotra are:
Ratlam ,
Notable persons from this gotra
Capt. Kanwal Singh Dalal – Hero of Indian National Army and the right-hand man of Netaji Subhash Chandra Bose.
Late Choudhary Rajpal Singh Dalal, Freedom Fighter (Village Lohlara, Bulandshahr) – He was prisoned in Singapore during World War 2 and later joined Netaji Subhas Chandra Bose’s Indian National Army. After independence of India, he served in Indian Army.
Sunita Dalal
Darmender Dalal – Player
Late Ch. Uday Singh Dalal – former MLA, from Mandothi village, Jhajjar district, Haryana.
Commodore SPS Dalal, VSM (son of JL Dalal, is a Naval Officer from Haryana, now an eminent Stress Management Consultant)
Dr. Shamsher Singh Dalal – grandson of JL Dalal, is an alumnus of PGI Rohtak and GMC, Patiala. Is an Interventional Radiologist presently working as Consultant in Univ. of Pennsylvania, Philadelphia.
Er. Amit Singh Dalal – son of RSS Dalal, is an Civil Engineer, presently working as Manager(Industrail Area), HSIIDC.
Er. Sandeep Singh Dalal – son of RSS Dalal, is an Food Engineer, presently working as Plant Incharge in Nestle Ltd.
H.K. Singh (Hemant Krishan Singh) – of the Indian Foreign Service.
Dr Harswarup Singh (Dalal) – Ex. Governor Pondichery
Brig. DP Singh – is the elder son of Udai Singh Dalal of Dabodha Kalan. Married to a Rajput girl from the royal family of Rajasthan, he retired from the Indian Army after having served on many prestigious assignments.
Commander Vijay Singh Dalal – the the younger brother of Brig. DP Singh. Was an ace pilot of the Indian Navy and after retirement is settled in Gurgaon
Karan Singh Dalal – Five-times MLA from Palwal.
Narendra Singh Dalal – RPS 1997 batch, Posted at Add SP CID SSB, Ajmer, From Bhiwani, Haryana,
Shekhar Singh Dalal: IAS (CSE-2011), Rank 71, Cadre Maharashtra, From:Delhi