कार्य करने से कोई भी व्यक्ति छोटा या फिर बड़ा नहीं होता, आपका काम ही आपकी पहचान हैं। सफल व्यक्ति के पीछे उसकी मेहनत ओर कार्य होता है ये सब वाक्य आपको काम की महत्ता बताते है लेकिन अगर भारत के संदर्भ में इन सब वाक्यों पर एक बार फिर से निगाह डालें तो हम पाएंगे ये सब सिर्फ एक वाक्य भर हैं। भारत में काम के महत्व को राजनीति ने खत्म कर दिया है। वोट बैंक की राजनीति ने काम कर के कमाने वाले को वहां लाकर खड़ा कर दिया है जहां वह अपने खून पसीने की कमाई को टैक्स के रूप में सरकार को देता है ओर सरकार उस पैसे का क्या करती है कायदे से तो वह पैसा लगना चाहिए जनता के विकास के लिए लेकिन उसका इस्तेमाल कहां होता हैं। चुनावों के दौरान जनता का अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए मुफ्त में दी जा रही योजनाओं की घोषणा व उनके पूरा करने में। राजनीतिक पार्टियों द्वारा सत्ता प्राप्त करने के लिए कर्ज माफी की घोषणा व उसको पूरा करने में, अपने राजनीतिक फायदे के लिए नेता कुछ भी वादा कर देते है जिसे पूरा किया जाता है जनता के पैसे से। सवाल यह उठता है कि आखिर जनता के इस पैसों को राजनीतिक पार्टियों के वादा पूर्ति के लिए क्यों इस्तेमाल किया जाए। हाल ही में केजरीवाल ने महिलाओं को मेट्रों में मुफ्त यातायात की सुविधा की घोषणा की है आखिर जनता के पैसों को अपने राजनीतिक वोट बैंक को बढ़ाने के लिए या फिर उसको बनाए रखने के लिया क्यों प्रयोग किया जा रहा हैं। जनता को मुफ्त की आदत क्यों डाली जा रही है क्यों उसे रोजगार देने के बजाए उसे फ्री में सब प्रदान करने की योजनाएं बनाई जाती है उससे तो मनुष्य कर्मशील बनने के बजाए कामचोर बनेगा। सरकार का कर्तव्य है कि वह ऐसी स्थिति पैदा करें कि लोगों को रोजगार प्राप्त हो व उनकी आमदनी बढ़े जिससे वे ज्यादा से ज्यादा टैक्स देने के काबिल बने। टैक्स में बढ़ोतरी से लोगों को सुविधाएं प्रदान की जाएं ना कि उन्हें मुफ्त की सुविधाएं दे ताकि वे कामचोर बनें। आज एक ओर तो कमाने वाला व्यक्ति अपनी सैलरी में से टैक्स देता है वहीं दूसरी ओर अगर आप किसी खाली पड़ी सरकारी जमीन पर अपनी झुग्गी डाल ले तो व एक कार्ड बनवा लें तो आपको दो रुपए किलो गेंहू व इसी मुल्य के आसपास दाल, चावल, आदि प्राप्त हो जाएगा। रहने के लिए मुफ्त की झुग्गी जहां आपको बिजली-पानी की मुफ्त सुविधा होगी साथ ही साथ सरकार द्वारा घोषित योजनाओं का लाभ समय समय पर मिलता रहेगा जिससे आपका जीवन आराम से कट जाएगा फिर व्यक्ति को क्या आवश्यकता होगी कि वह कमाने के लिए बाहर जाए। जब उसका पेट सरकार मुफ्त में भरने को तैयार है तो वह क्यों कोशिश करेगा कि अपनी आमदनी बढ़ाएं जबकि होना चाहिए यह था कि सरकार उसे काम दें तथा उससे टैक्स प्राप्त करें। बेरोजगारी व महंगाई लगातार बढ़ रही है जिसकी मार झेल रहा है मध्यम वर्ग से संबंधित व्यक्ति। क्योंकि ना वह गरीब है ओर ना वह अमीर। वह दिन रात काम करके पैसा कमाता है वह सरकार के टैक्स की मार झेलता है। उस पर से उस के लिए सरकार के द्वारा किसी प्रकार की योजना का निर्माण या घोषणा नहीं की जाती । सारी योजनाएं गरीबों को ध्यान में रखकर की जाती है लेकिन अगर योजना लोगों को रोजगार व मासिक आय में वृद्धि को ध्यान में रखकर बनाई जाए तो क्या इससे लोगों को फायदा नहीं होगा। मुफ्त का राशन, कर्ज माफी, व मुफ्त की सुविधाएं क्या मनुष्य को कर्म करने से नहीं रोकती। अब समय आ गया है कि सरकार को वोट बैंक की राजनीति से बाहर आना होगा तभी देश विकास के रास्ते पर अग्रसर होगा।
रिसर्च में पता चलता है कि हमारे देश में डिग्री धारक आधे से ज्यादा लोग काबिलियत नहीं रखते हैं। सरकार यह कोशिश क्यों नहीं करती की लोगों को काबिल बनाया जाए जबकि राजनीतिक पार्टिया सत्ता में आने के लिए ऐसी घोषणाएं करती है जिससे लोगों में काबिलियत बढऩे के बजाए उनकी प्रतिभा नष्ट हो। कुछ ऐसा ही निर्णय कुछ साल पहले शिक्षा के क्षेत्र में लिया गया था कि आठवीं तक किसी भी बच्चे को फेल नहीं किया जाएग जिसके कारण आज आधे से ज्यादा बच्चे आठवीं में वे है जिन्हें सही से पढऩा भी नहीं आता लिखना तो दूर की बात हैं। अगर ऐसे बच्चें नौंवी में पहुंच भी गए तो क्या वे नौंवी पास कर पाएंगे अगर किसी तरह उन्होंने पास भी कर ली तो बारहवीं तक उनको केवल पासिंग माक्र्स हासिल करने की काबिलित होगी। अब सवाल यह उठता है कि केवल पासिंग माक्र्स हासिल करने के पश्चात उन्हें नौकरी कौन देंगा। तो आपको यह समझना होगा कि अगर सरकार आपको कुछ मुफ्त देने की घोषणा करती है तो आपको खुश नहीं होना चाहिए बल्कि आपको सवल करना च ाहिए कि मुफ्त में क्यों । नागरिकों को इतना सशक्त बनाओं उन्हें रोजगार दो ताकि वे सभी सुविधाओं का शुल्क आराम से दे सकें जिससे देश को भी टैक्स प्राप्त हो ओर उस पैसे को सही से जनता के विकास के लिए उपयोग किया जा सकें ना कि मुफ्त देने की घोषणा करके उनका अपमान किया जाए।
जोगेन्द्र मान -9717525552
संपादक जाट जागरण पत्रिका