महिलाओं के परिधान विषय पर शोधनिबंध प्रस्तुत !
महिलाओं की वेशभूषा का उसकी सात्त्विकता पर प्रभाव होता है !
महिलाओं की वेशभूषा के कलात्मक रचना करनेवाले कलाकार (ड्रेस डिजायनर्स) एवं उनकी निर्मिति करनेवाले (फैशन हाऊसेस) को वेशभूषा की सात्त्विकता बढानेवाले आध्यात्मिक घटकों की जानकारी होना आवश्यक है । यह ध्यान में रख उसके अनुसार वेशभूषा की रचना की तो महिलाओं की वेशभूषा पर एक महत्त्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव होगा । इससे विश्वभर के महिलाओं के आध्यात्मिक सौंदर्य में वृद्धि के साथ उनकी सात्त्विकता पर परिणाम होगा, यह प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की कु. कृतिका खत्री ने किया । नई देहली में संपन्न ‘23rd India Conference of WAVES on Vedic Wisdom and Women : Contemporary Perspective इस राष्ट्रीय परिषद में 5 दिसंबर 2019 को आयोजित परिषद में वे बोल रहीं थी । यह परिषद ‘Wide Association for Vedic Studies (WAVES) एवं Nari Samvaad Prakalp, IGNCA, New Delhi’ के संयुक्त विद्यमान से आयोजित की गई थी । कु. कृतिका खत्री ने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले लिखित शोधनिबंध ‘साडी – महिलाओं के लिए परिपूर्ण वेशभूषा’ प्रस्तुत किया । कु magyargenerikus.com/. कृतिका खत्री एवं श्री. शॉन क्लार्क ये इस शोधनिबंध के सहलेखक हैं । विश्वविद्यालय द्वारा वैज्ञानिक परिषदों में प्रस्तुत किया गया यह 60 वा शोधनिबंध था । इससे पूर्व 14 राष्ट्रीय तथा 45 आंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में विविध शोधनिबंध प्रस्तुत किए गए हैं । इनमे से 4 आंतरराष्ट्रीय परिषदों में विश्वविद्यालय के शोधनिबंधों को सर्वोच्च शोधनिबंध पुरस्कार प्राप्त हुआ । इस शोधनिबंध में कु. कृतिका खत्री ने इस विषय के प्राथमिक शोध के अंतर्गत किए एक प्रयोग की जानकारी दी । यह प्रयोग डॉ. मन्नम मूर्ति (भूतपूर्व परमाणु वैज्ञानिक) द्वारा विकसित ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ नामक ऊर्जा मापक यंत्र की सहायता से किया गया । इस यंत्र के माध्यम से व्यक्ति की सकारात्मक एवं नकारात्मक ऊर्जा मापी जा सकती है । इस प्रयोग के अंतर्गत एक आध्यात्मिक शोध केंद्र में रहनेवाली स्त्री को 7 विविध परिधान 30-30 मिनट पहनने के लिए बताया गया । प्रत्येक परिधान पहनने के पूर्व तथा वह परिधान 30 मिनट पहनने के उपरांत ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ से उसकी ऊर्जा मापी गई । जब उसने ‘व्हाईट इवनिंग गाऊन’, ‘ब्लैक ट्यूब टॉप ड्रेस’ तथा ‘काली पैन्ट एवं टी-शर्ट’ जैसे परिधान पहने, तब उसकी नकारात्मक ऊर्जा अत्यधिक बढ गई । इसकी तुलना में जब उसने ‘सफेद पैन्ट और शर्ट’ पहनी, तो उसकी नकारात्मकता थोडी घट गई । जब उसने सलवार-कमीज, 6 गज और 9 गज की साडी पहनी, तो उसकी नकारात्मकता उत्तरोत्तर घटती गई । इसके विपरीत 6 गज और 9 गज की साडी पहनने पर उसकी सकारात्मक ऊर्जा बडी मात्रा में बढी । विशेष बात यह है कि ये बढोतरी साडी केवल 30 मिनट पहनने पर हो गई ! प्रख्यात मनोरोग विशेषज्ञ श्री. मास्लो के ‘आवश्यकताओं के पिरामिड’ के दृष्टिकोण से परिधान की ओर देखें, तो अत्यंत मूलभूत शारीरिक आवश्यकता के स्तर पर वस्त्र ठंडी-गरमी से हमारी रक्षा करते हैं । सुरक्षा के स्तर की हमारी आवश्यकता भी वे पूरी करते हैं; परंतु मानसिक स्तर के आत्मसम्मान (सेल्फ एस्टीम) जैसी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वस्त्रों पर सर्वाधिक धन खर्च किया जाता है । वस्त्र खरीदना और उसे पहनना ‘स्व’ के परे जाकर (सेल्फ ट्रान्सेंडन्स) मूलभूती आवश्यकता पूरी करने के माध्यम के रूप में कभी भी नहीं देखा जाता । किसी की दिव्यता की ओर जाने की यात्रा में वस्त्र किस प्रकार से योगदान दे सकते हैं ? इसके लिए हमारे वस्त्रों में वातावरण की सकारात्मक ऊर्जा आकर्षित कर, उसे पुनः वातावरण में प्रक्षेपित करने की क्षमता होनी चाहिए । इस माध्यम से इस ऊर्जा का देखनेवाले को भी लाभ मिल सकता है । वस्त्र में उसे पहननेवाले की सूक्ष्म स्तरीय नकारात्मक स्पंदनों से रक्षा और आध्यात्मिक उपचार करने की क्षमता होनी चाहिए । मानवजाति पर वस्त्रों का बडा बडा प्रभाव होता है । तामसिक वस्त्रों से मन चंचल और आक्रामक, जबकि राजसिक वस्त्रों से अस्वस्थ हो जाता है । सात्त्विक वस्त्र मन में स्थिरता और शांति निर्माण करते हैं । नौ गज की साडी सर्वाधिक सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करती है, ऐसा महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध से ज्ञात हुआ है । दुर्भाग्य से आजकल शहरी भाग से 9 गज की साडी पूर्णतः समाप्त हो गई है; ग्रामीण भाग में भी उसका अत्यल्प उपयोग किया जाता है !