गौतमबुद्ध नगर। आज हर खेल में जाटों का दबदबा है। जिससे प्रेरणा लेकर खेलों के लिए एक नई पौध तैयार हो रही है जो कि आने वाले समय में भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जिताने के लिए अभी से जी तोड़ मेहनत कर रही है। शायद आज आप इनको ना जानते हो लेकिन आने वाले समय में शायद दुनिया इनके नाम से अपने बच्चों का नाम रखें। जी हां आज हम आपको एक ऐसी ही शख्सियत से रू-ब-रू करा रहे हैं। नाम है आशू चौधरी। हाल ही में इन्होंने नेपाल की राजधानी काठमांडू में आयोजित इंटरनेशनल एथलिटस प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतकर देश ओर अपने समाज का नाम रोशन किया है। दुरियाई गौतम बुद्ध नगर के एक किसान परिवार में कृष्ण पाल सिंह के परिवार में जन्म लिया।
हाल में ११वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहें है। साथ ही साथ खेलों में भी अपनी किस्मत आजमा रहें है। आशू चौधरी ने इसके अलावा भारत के विभिन्न राज्यों जैसे लखनऊ यूनिवर्सिटी में आयोजित प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल प्राप्त किया । इसके अलावा उत्तराखंड, गुडग़ांव आदि विभिन्न स्थानों पर आयोजित प्रतियोगिताओं में भी पदक प्राप्त करके अपने देश व समाज का नाम रोशन किया है। लेकिन सबसे ज्यादा काबिले तारीफ यह है कि आशू चौधरी बिना किसी प्रोफेशनल मार्ग दर्शन के यक कामयाबी के प्रचम लहरा रहें हैं। जब आशू चौधरी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि वे किसी प्रकार की भी कोचिंग नहीं लेते है जो कुछ उन्होंने हासिल किया है केवल अपने बड़ो के आशीर्वाद से ओर अपने मेहनत से ही। गांव में ही वे दौड़ की प्रैक्टिस करते है।
उनकी आर्थिक स्थित इतनी मजबूत नहीं है कि वे ट्रेनर से किसी प्रकार कोचिंग ले सकें। ना ही गांव के आस पास कोई इस प्रकार की सुविधा है। इसी केा ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपना लक्ष्य तय कर रखा है कि वे भारत का नाम रोशन करना चाहते है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक प्राप्त करके वे अपने समाज, गांव व देश का नाम रोशन करना ही उनकी एक मात्र ख्वाहिश है। जब उनसे खेलों को ध्यान में रखकर बात की गई तो उन्होंने बताया कि हमारे भारत देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है लेकिन खिलाडिय़ों को सही समय पर सुविधाएं एवं मार्ग दर्शन नहीं मिलना हमें पदक तालिका में पीछडने के लिए मजबूर कर देता है।
उन्होंने सरकार से गुजारिश की है कि पदक जितने के बाद जिस प्रकार से सरकार खिलाडिय़ों पर महरबान होती है उसका कुछ महरबानी अगर खिलाडिय़ों के तैयारी करते समय हो जाए तो हमारे देश में आने वाले पदकों का प्रतिशत काफी गुना बढ़ सकता है। ना जाने कितने ही प्रतिभाशाली खिलाड़ी सुविधाओं की कमी व अपने आर्थिक स्थिति से मजबूर होकर अपने सपनों को अलमारियों में बंद कर देते है। जिसका खामियाजा खिलाड़ी को तो भुगतना ही पड़ता है साथ ही साथ देश को भी भुगतना होता है जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक तालिका में भारत काफी देशों से पीछे होता है जबकि भारत के नौजवानों में अन्य देशों के नौजवानों के मुकाबले पद पाने की काबिलियत काफी ज्यादा हैं।
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